प्रेम त्याग भावना , कर्तब्य भावना से ही होना चाहिए |
सौदर्य और वासना का प्रेम , प्रेम नहीं होता है |
वह एक तरह का धोखा है | प्रेम आत्मा से किया जाता है |
शारीर से नहीं क्योंकि शारीर नाशवान है |
प्रेम कर्तव से किया जाता है | कामुकता से नहीं |
प्रेम में किसी प्रकार का विकार नहीं होना चाहिए |
प्रेम गंगा जल की तरह पवित्र होना चाहिए |
प्रेम में निस्वार्थ सेवा भावना होनी चाहिए |
प्रेम किसी से भी किया जा सकता है |
यदि व्यक्ति में ये सभी विचार हो तभी वह
एक प्रेम पुजारी कहा जा सकता है |
और संसार स्वर्ग बन जायगा , और प्रत्येक
जगह सन्ति , सदभावना, और संतोष हो जायगा |
आपसी प्रेम से ही यह संसार स्वर्ग बन सकता है |
और उसके आभाव से लोगो का जीवन मुश्किल होता जा रहा है |
इसलिए प्रेम के मार्ग पर चलना आवशक है |
I like your thinking.... nice dear, Keep it UP!!!!
ReplyDeleteThanks..
Deletenice thinking
ReplyDeletewww.jeevankasatya.com